स्ट्रीट फूड Vs घर का खाना: आपके दिल की आवाज़? 

Published By Anant on 13 Feb, 2024

1. स्वाद की बात: स्ट्रीट फूड - चटपटा, तीखा, मसालेदार  स्वाद का मज़ा ही कुछ और है पर घर का खाना - मम्मी के हाथ का बना, प्यार से भरा, सीधा दिल में उतरता है।

Image credit - Firefly

 पैसों का हिसाब: स्ट्रीट फूड - अरे, थोड़ा महंगा पड़ता है यार! घर का खाना - बजट में रहता है, पैसे भी बचते हैं।

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टाइम नहीं है: स्ट्रीट फूड - झटपट मिल जाता है, भाग-दौड़ में सही लगता है पर घर का खाना - बनने में टाइम लगता है, इंतज़ार करना पड़ता है खाने के लिए 

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 साफ-सफाई का सोचो: स्ट्रीट फूड - कहां और कैसे बनता है...थोड़ा सोचना पड़ता है लेकिन वही घर का खाना - अपनी किचन, बिल्कुल साफ, खाने में कोई डर नहीं होता है !

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 सेहत की फिक्र: स्ट्रीट फूड - ज्यादा तेल-मसाला से बना होता है जो सेहत के लिए ठीक नहीं होता है पर वही घर का खाना - सब्ज़ी, दाल, संतुलित खाना होता है जिससे बॉडी खुश रहती है यानी स्वस्थ पर बुरा असर नहीं पड़ता है। 

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यादों का पिटारा: स्ट्रीट फूड - दोस्तों के साथ गोलगप्पे, कॉलेज के बाहर की मस्ती से भरा यादों का पिटारा होता है और घर का खाना - परिवार के साथ बैठकर खाना, बचपन की यादें ताज़ा कर देता है।

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नए-नए स्वाद: स्ट्रीट फूड - हर गली में कुछ अलग खाकर कुछ नया  एक्सपेरिमेंट करने का मौका देता है पर घर का खाना  भी किमी नहीं , मां के हाथ के बने अलग-अलग व्यंजन स्ट्रीट फ़ूड से लाख गुना अच्छे होते हैं।

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 कुछ नया चाहिए: स्ट्रीट फूड - आज कुछ हटके ट्राई करते हैं वाली फीलिंगहोती है । घर का खाना - घर के खाने का कम्फर्ट, वही अपनापन होता है ।

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धरती मां का ख्याल: स्ट्रीट फूड - प्लास्टिक, डिस्पोज़ल से कचरा बहुत होता है। घर का खाना - पर्यावरण को कम नुकसान पहुँचाता है , और कही न कही  ये एचएमई एक ज़िम्मेदार इंसान बनाता है। 

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अब दिल क्या कहता है?: स्ट्रीट फूड - कभी-कभी मन ललचाता है। घर का खाना - हमेशा अपना लगता है, प्यार से भरा होता है।

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